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परशुराम जयंती, 2023 | Shakti Unleashed: Celebrating the Warrior Spirit of Parshuram Jayanti

परशुरामजी

जब जब होई धरम की हानि, बाढ़हिं असुरअधम अभिमानी ,
तब तब धरी प्रभु विविध शरीरा, हरहिं दयानिधि सज्जन पीरा।।

अर्थात: जब जब इस धरा पर धर्म की हानि होती है, राक्षस रूपी विचारधारा वाले, अधर्मी, अभिमानी लोगो का प्रभाव बढ़ जाता है, तब तब भगवान श्री हरि अलग-अलग प्रकार के रूपों में अवतरित होकर ऐसे असुरों का नाश करते है, और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
इन्हीं भगवान श्री विष्णु के अवतारों में से एक श्री परशुरामजी ने भी अक्षय तृतीया के दिन अपने भक्तों की रक्षा करने हेतु त्रेता युग में रामायण काल में भगवान विष्णु के छठवें अवतार के रूप में जन्म लिया था।

प्रचलित कथा

प्राचीन कथाओं के अनुसार महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि ने एक बार पुत्रेष्टि यज्ञ किया था। इससे प्रसन्न होकर देवराज इंद्र के वरदान स्वरूप महर्षि जमदग्नि की पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मध्यप्रदेश के इंदौर जिले के ग्राम मानपुर में स्थित जानापाव पर्वत पर श्री परशुरामजी ने जन्म लिया था।


परशुराम जी को भगवान विष्णु का आवेश अवतार भी कहते हैं। पहले परशुरामजी का नाम राम था, लेकिन जब भगवान शिव ने अपना परसा नामक अस्त्र परशुरामजी को प्रदान किया तो दुनिया इन्हें परशुरामजी के नाम से जानने लगी।

आरंभिक शिक्षा

श्री परशुरामजी की आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं त्रचिक ऋषि के आश्रम में प्रारंभ हुई । महर्षि त्रचिक ने इन्हे शारदंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष्य एवं महर्षि कश्यप ने वैष्णव मंत्र दिया। परशुरामजी ने बाद में कैलाश पर्वत पर शिवजी के आश्रम में आगे की विद्या प्राप्त की । वहां भगवान शिव ने उन्हें परसा नामक अस्त्र प्रदान किया । भगवान शिव जी ने उन्हें श्री कृष्ण का त्रिलोक्य विजय कवच “स्तवराज स्त्रोत” और “कल्पतरू मंत्र” भी दिया ।
भगवान परशुराम जी के चक्रतीर्थ में किए गए कठिन तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें कलयुग के अंत तक धरती पर वास करने का आशीर्वाद दिया ।

शस्त्र विद्या

भगवान परशुरामजी शस्त्र विद्या में निपुण थे । इन्होंने भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य व कर्ण आदि को शस्त्र विद्या प्रदान की थी।

परशुराम गायत्री मंत्र

” ॐ जामदागन्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्न: परशुराम: प्रचोदयात्।”

परशुरामजी ने ऋषि अत्री की पत्नी अनुसया ,अगस्त ऋषि की पत्नी लोपामुद्रा और अपने प्रिय शिष्य अक्रतवन के सहयोग से विराट “नारी जागृति अभियान” का संचालन भी किया था।

परशुरामजी का उल्लेख

रामायण, महाभारत, भागवत पुराण एवं कल्कि पुराण इत्यादि ग्रंथों में परशुरामजी का उल्लेख मिलता है।
परशुरामजी ने धरती पर वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया । कहते हैं कि भारत के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाए गए थे, जिसमें की कोकन, गोवा एवं केरल का समावेश है।


पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम ने तीर चला कर गुजरात से लेकर केरल तक समुद्र को पीछे धकेल दिया था, और नई भूमि का निर्माण किया था । इसीलिए कोकण , गोवा और केरला में भगवान परशुराम वंदनीय है।


भगवान परशुराम ब्राह्मण की कोख से अवश्य जन्मे थे किंतु वे कर्म से क्षत्रिय थे । उन्हें भार्गव नाम से भी जाना जाता है।
भगवान परशुराम ने अपनी अधिकांश विद्या बाल्यावस्था में ही अपने माता से सीख ली थी। वे पशु- पक्षियों की भाषा को भी समझते थे और उनसे बातें भी करते थे । यहां तक की वे सभी उनके मित्र भी बन जाते थे । वैसे तो भगवान परशुराम सिर्फ ब्राह्मणों को ही सैन्य शिक्षा देते थे लेकिन इनमें कुछ अपवाद भी है , जैसे पितामह भीष्म और कर्ण।

श्रीमद् भागवत में दृष्टांत है कि एक बार गंधर्वराज चित्ररथ अप्सराओं के साथ विहार कर रहें थे। माता रेणुका उस समय हवन के लिए जल लेने गई व उन्हे निहारती रही। हवन का समय व्यतीत हो जाने से क्रुद्ध होकर मुनि जामदाग्नि ने अपनी पत्नी के आर्य मर्यादा विरोधी आचरण एवं मानसिक व्यभिचार करने के दंड स्वरूप अपने सभी पुत्रों को माता रेणुका का वध करने की आज्ञा दी।
अन्य भाइयों द्वारा ऐसा दुस्साहस न कर पाने पर , पिता के तपोबल से प्रभावित होकर और उनकी आज्ञा अनुसार, परशुरामजी ने माता का सर धड़ से अलग कर दिया । और उन्हें बचाने हेतु आगे आए अपने सभी भाइयों का भी वध कर दिया।

उनके इस कार्य से जमदग्नि ने प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने को कहा। तब परशुराम जी ने विनंती पूर्वक सभी को पुनर्जीवित होने का और उनके द्वारा वध किए जाने संबंधी स्मृति नष्ट हो जाने का वर मांगा।

श्रीमद् भागवत एवं रामायण के अनुसार भगवान परशुरामजी ने क्षत्रियों के अधिपति सहस्त्रार्जुन और उनके पुत्र एवं पौत्र का 21 बार इस धरती से नाश किया था। जो बच्चे गर्भ में रह जाते थे वहीं बचते थे।

ऋषि वशिष्ठ के श्राप के कारण सहस्त्रार्जुन की बुद्धि मारी गई थी | सहस्त्रार्जुन जमदग्नि के आश्रम में एक कपिला कामधेनु को बलपूर्वक छीन कर ले गए | परशुराम जी को जब यह बात पता चली तब पिता के सम्मान के हेतु उन्होंने कामधेनु को वापस लाने का निर्णय लिया और सहस्त्रार्जुन से युद्ध किया |

इस युद्ध में परशुरामजी ने सहस्त्रार्जुन की सभी भुजाएं काट डाली और सहस्त्रार्जुन को मार दिया | तब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोध लेने के लिए परशुरामजी की अनुपस्थिति में उनके पिता की हत्या कर दी। परशुराम जी की माता रेणुका इस हत्या से विचलित होकर चिता में प्रवेश कर सती हो गई । इस घटना से परशुरामजी अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने संकल्प लिया कि वे इस पृथ्वी से सभी क्षत्रियों का नाश करके ही दम लेंगे । उन्होंने बाद में अहंकारी एवं दुष्ट प्रवृत्ति के क्षत्रियों का नाश कर पृथ्वी को क्षत्रिय मुक्त किया ।

कल्कि पुराण के अनुसार भगवान परशुराम भगवान विष्णु के चौबीसवे तथा अंतिम अवतार कल्कि के गुरु होंगे , और उन्हें युद्ध की शिक्षा भी देंगे। वे कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए कहेंगे।
भगवान परशुराम शस्त्र विद्या की श्रेष्ठ जानकार “केरल के मार्शल आर्ट – करालिपायत्तू” की उत्तरी शेली “वडक्कन करौली” के संस्थापक, आचार्य , एवं आदि गुरु भी थे।

भगवान् परशुराम जी की गति किसके समान बताई गई है?

मन और वायु के समान।

परशुरामजी का सहस्त्रबाहु से युद्ध किस स्थल पर हुआ था?

नर्मदाजी के तट पर।

परशुरामजी ने पृथ्वी को कितनी बार आततायी विहीन कर दिया था?

इक्कीस बार।

परशुराम जी के पिता सप्तर्षियों के मंडल में कौन से ऋषि हुए?

सातवें ऋषि ।

इस परव को याद करते हुए, हम सभी को धर्म, समर्पण और निष्ठा के महत्व को याद रखना चाहिए। जय श्री परशुराम!

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