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Sikandar Ka Muqaddar Review: धोखा और सस्पेंस से भरी एक थ्रिलर क्राइम ड्रामा 24

Sikandar Ka Muqaddar जो नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रहा है, एक थ्रिलर फिल्म है जिसे नीराज पांडे ने निर्देशित किया है। फिल्म में जिमी शेरगिल, तमन्ना भाटिया और अविनाश तिवारी जैसे प्रतिभाशाली अभिनेता प्रमुख भूमिकाओं में हैं।

Sikandar Ka Muqaddar

कहानी की विशेषताएँ: फिल्म की कहानी एक हीरे की डकैती के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसमें करोड़ों के हीरे चुराए जाते हैं। इंस्पेक्टर जसविंदर सिंह (जिमी शेरगिल) इस केस को अपने हाथ में लेता है। फिल्म की विशेषता यह है कि इसमें दो अलग-अलग टाइमलाइनों का समावेश किया गया है, जो अपराध और इसके पीछे के रहस्यों को और भी दिलचस्प बनाती हैं ।

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नाटकीयता और ऐक्शन: फिल्म का स्क्रीनप्ले और ऐक्शन दोनों ही उन्नत हैं। नीराज पांडे ने इस फिल्म में रोमांच और उत्तेजना को बखूबी पकड़ा है, जो उनकी पिछली फिल्मों जैसे टेल्ली सीरीज और स्पेशल 26 में भी दिखाई देता है। फिल्म में जबरदस्त ऐक्शन सीक्वेंस हैं, जो थ्रिल को बरकरार रखते हैं ।

क्लाइमेक्स की समस्या: हालांकि फिल्म की शुरुआत मजबूत है, लेकिन जैसे-जैसे यह समाप्ति की ओर बढ़ती है, दर्शक को यह समझ में आने लगता है कि क्या होने वाला है। फिल्म का क्लाइमेक्स कुछ हद तक खिंच जाता है, जिससे उसकी निरंतरता में कमी महसूस होती है। यह एक थ्रिलर फिल्म के लिए बड़ी समस्या हो सकती है, क्योंकि रहस्य के खुलासे के बाद उसकी गति धीमी हो जाती है ।

सम्भावनाओं का सही इस्तेमाल नहीं होना: फिल्म का स्क्रीनप्ले और संपादन पर और काम किया जा सकता था। कुछ दृश्य बेमानी और खिंचे हुए लगते हैं। विशेष रूप से फिल्म के अंत के पास, आप पहले से ही अनुमान लगा सकते हैं कि क्या होने वाला है, जो फिल्म के थ्रिल को कमजोर करता है

आर्टिस्टिक दिशा: फिल्म में सेपिया टोन का प्रयोग किया गया है, जो एक पुराने समय का अहसास देता है। हालांकि यह एक दिलचस्प पहलू है, लेकिन फिल्म के काले और सफेद समयरेखा के कारण यह थोड़ा अधिक महसूस होता है। खासतौर पर जब हम 90 के दशक में नहीं लौट रहे हैं, तो यह थोड़ी अधिक हो जाती है

संगीत और फिल्मांकन: फिल्म का संगीत ठीक है, लेकिन इसमें विशेष रूप से कोई ऐसा गाना नहीं है जो लंबे समय तक याद रह जाए। वहीं, फिल्मांकन उत्कृष्ट है, जिसमें सभी कलाकारों ने अपनी भूमिकाओं को बखूबी निभाया है

अंतिम विचार: सिकंदर का मुक़द्दर एक अच्छी थ्रिलर हो सकती थी, अगर इसके स्क्रीनप्ले और संपादन में थोड़ा और ध्यान दिया जाता। जिमी शेरगिल और तमन्ना भाटिया की शानदार अभिनय ने फिल्म को अच्छे से संवारा है, लेकिन फिल्म के खिंचे हुए क्लाइमेक्स और भविष्यवाणी योग्य घटनाओं ने फिल्म को उसकी पूरी क्षमता तक पहुंचने से रोक दिया।

अगर आप थ्रिलर और क्राइम ड्रामा के शौकिन हैं, तो यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है, लेकिन यह एक आदर्श हीस्ट फिल्म नहीं बन पाई ।

यह फिल्म फिलहाल नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है और दर्शकों के लिए उपलब्ध है।

नीरज पांडे की निर्देशित फिल्म सिकंदर का मुक़द्दर एक दिलचस्प अपराध थ्रिलर है, लेकिन इसके बावजूद फिल्म में कई ऐसे पहलू हैं, जो इसे पूरी तरह से सफल नहीं बना पाते। आइए, विस्तार से समझते हैं कि क्या गलत है:

फिल्म की सबसे बड़ी समस्या इसकी लंबाई है। एक थ्रिलर फिल्म में गति (pacing) का बहुत महत्व होता है, लेकिन सिकंदर का मुक़द्दर में कई जगह पर कहानी खिंच जाती है। फिल्म की गति धीमी हो जाती है, जिससे दर्शकों का ध्यान भटकने लगता है। क्लाइमेक्स तक पहुंचते-पहुंचते यह इतना लंबा हो जाता है कि इसकी प्रभावशीलता कम हो जाती है।

इसकी जगह अगर फिल्म को थोड़ी और संक्षिप्त और तीव्र रखा जाता, तो कहानी का प्रभाव कहीं अधिक हो सकता था ।

फिल्म के क्लाइमेक्स में वह मिस्ट्री और थ्रिल नहीं है जो एक अच्छे थ्रिलर से उम्मीद की जाती है। जैसे-जैसे फिल्म का अंत नजदीक आता है, दर्शक पहले ही अनुमान लगा लेते हैं कि क्या होने वाला है। इससे फिल्म की टेंशन और रोमांच में कमी आ जाती है। यह एक थ्रिलर फिल्म के लिए एक महत्वपूर्ण खामी है, क्योंकि इस तरह की फिल्में तब तक प्रभावी रहती हैं जब तक उनका क्लाइमेक्स अप्रत्याशित और चौंकाने वाला होता है।

फिल्म का स्क्रीनप्ले कहीं-कहीं बेहद खिंचता हुआ और अनुमानित हो जाता है। इस पर थोड़ा और काम किया जा सकता था। खासतौर पर फिल्म के मध्य में कुछ दृश्य अव्यावहारिक (unrealistic) लगते हैं, जो इसकी कड़ी को कमजोर कर देते हैं। इससे फिल्म का फ्लो बाधित होता है, और दर्शक उतने जुड़ाव के साथ नहीं रह पाते जितना उन्हें होना चाहिए।

फिल्म का संपादन भी कुछ स्थानों पर कमजोर महसूस होता है। कुछ दृश्य और संवाद बेमानी और बिना किसी उद्देश्य के खींचे गए लगते हैं। इससे न केवल फिल्म का फ्लो खराब होता है, बल्कि यह भी लगता है कि कुछ महत्वपूर्ण मोड़ों को और बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता था। अगर संपादन पर थोड़ा और ध्यान दिया जाता, तो फिल्म अधिक आकर्षक बन सकती थी।

फिल्म में सेपिया टोन का उपयोग किया गया है, जो पुराने समय का एहसास दिलाता है। हालांकि, यह एक दिलचस्प काव्यात्मक पहलू है, लेकिन जब हम 90 के दशक में वापस नहीं जा रहे हैं, तो यह थोड़ा ज़्यादा महसूस होता है। इसके परिणामस्वरूप फिल्म में एक अजीब सा प्रभाव उत्पन्न होता है, जो फिल्म की वास्तविकता को कहीं न कहीं बाधित करता है।

फिल्म का संगीत ठीक-ठाक है, लेकिन उसमें कोई ऐसा गाना नहीं है जो लंबे समय तक दर्शकों के दिमाग में रह जाए। एक थ्रिलर फिल्म में अच्छे संगीत का होना आवश्यक होता है, जो फिल्म की वातावरण को और भी निखारे, लेकिन यहाँ ऐसा नहीं हुआ। अगर संगीत पर थोड़ा और ध्यान दिया जाता, तो फिल्म की संपूर्णता में एक नया आयाम जुड़ सकता था ।

सिकंदर का मुक़द्दर में बहुत सी ऐसी बातें हैं, जो इसे एक बेहतरीन थ्रिलर बनाने से रोकती हैं। हालांकि जिमी शेरगिल, तमन्ना भाटिया और अविनाश तिवारी की बेहतरीन अदाकारी ने फिल्म को कुछ हद तक संभाला है, लेकिन इसकी खिंची हुई कहानी और भविष्यवाणी योग्य क्लाइमेक्स ने फिल्म की प्रभावशीलता को घटा दिया है।

अगर फिल्म का स्क्रीनप्ले और संपादन बेहतर होते, तो यह निश्चित रूप से एक आकर्षक थ्रिलर बन सकती थी【

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